Delhi : नाबालिग लड़की के साथ यौन हिंसा के एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के विवादित फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने इस फैसले को असंवेदनशील बताते हुए स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार समेत सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है।
हाई कोर्ट के फैसले पर विवाद
17 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने अपने फैसले में कहा था कि पीड़िता को खींचकर पुलिया के नीचे ले जाना, उसके ब्रेस्ट को पकड़ना और पजामे की डोरी तोड़ना “रेप की कोशिश” नहीं माना जा सकता। यह टिप्पणी 11 साल की नाबालिग के मामले में की गई थी। जज ने इसे “महिला की गरिमा पर आघात” तो माना, लेकिन इसे रेप या रेप का प्रयास मानने से इनकार कर दिया।
हाई कोर्ट ने इस आधार पर आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), 18 (अपराध की कोशिश) और पॉक्सो एक्ट की धाराएं हटा दी थीं। इसके बजाय, कोर्ट ने 354-B (महिला को निर्वस्त्र करने के मकसद से बलप्रयोग) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाने का निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
हाई कोर्ट के इस फैसले के दूरगामी प्रभाव को देखते हुए कई सामाजिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की थी। ‘वी द वीमेन’ नामक संस्था ने इस संबंध में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को पत्र भी लिखा था।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई। सुनवाई के दौरान जजों ने कहा कि आमतौर पर वे हाई कोर्ट के किसी जज पर टिप्पणी नहीं करते, लेकिन इस मामले में अत्यधिक पीड़ा के साथ कहना पड़ रहा है कि यह फैसला असंवेदनशील है।
सरकार और न्यायपालिका की प्रतिक्रिया
सुनवाई में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि कुछ मामलों में कोर्ट को तत्काल दखल देना जरूरी होता है। उन्होंने खासतौर पर फैसले के पैराग्राफ 21, 24 और 26 को लेकर चिंता जताई, जिनमें आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई थीं। मेहता ने सुझाव दिया कि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे जज संवेदनशील मामलों की सुनवाई न करें।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी नोट किया कि हाई कोर्ट ने यह फैसला जल्दबाजी में नहीं, बल्कि चार महीने तक सुरक्षित रखने के बाद सुनाया था। इसके बावजूद, फैसले की भाषा और निष्कर्ष कानूनी दृष्टि से गलत और अमानवीय प्रतीत होते हैं।
अगली कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले पर तत्काल रोक लगाते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी कर दिया है। मामले की अगली सुनवाई जल्द की जाएगी।